साहब ने इस ग़ुलाम को आज़ाद कर दिया
लो बंदगी कि छूट गए बंदगी से हम
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(845) Peoples Rate This
राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
मोमिन मैं अपने नालों के सदक़े कि कहते हैं
क्यूँ ज़र्द है रंग किस लिए आँसू लाल
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
ता न पड़े ख़लल कहीं आप के ख़्वाब-ए-नाज़ में
हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
ने जाए वाँ बने है ने बिन जाए चैन है
हम समझते हैं आज़माने को
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
शब जो मस्जिद में जा फँसे 'मोमिन'
आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त