माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ
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मैं अगर आप से जाऊँ तो क़रार आ जाए
शब जो मस्जिद में जा फँसे 'मोमिन'
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हुई तासीर आह-ओ-ज़ारी की
मोमिन मैं अपने नालों के सदक़े कि कहते हैं
हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद ओ याद-ए-शराब में
अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की
ये उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया