मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
तुम ने अच्छा किया निबाह न की
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तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब
राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
तुम हमारे किसी तरह न हुए
शब तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
ऐ आरज़ू-ए-क़त्ल ज़रा दिल को थामना
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
ये उज़्र-ए-इम्तिहान-ए-जज़्ब-ए-दिल कैसा निकल आया
कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
तुम मिरे पास होते हो गोया
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
चल परे हट मुझे न दिखला मुँह