चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'
जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया
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मैं अगर आप से जाऊँ तो क़रार आ जाए
जो तेरे मुँह से न हो शर्मसार आईना
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
तुम मिरे पास होते हो गोया
मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
क्यूँ ज़र्द है रंग किस लिए आँसू लाल
आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो
डर तो मुझे किस का है कि मैं कुछ नहीं कहता
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था