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आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो - मोमिन ख़ाँ मोमिन कविता - Darsaal

आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो

आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो

है बुल-हवसों पर भी सितम नाज़ तो देखो

उस बुत के लिए मैं हवस-ए-हूर से गुज़रा

इस इश्क़-ए-ख़ुश-अंजाम का आग़ाज़ तो देखो

चश्मक मिरी वहशत पे है क्या हज़रत-ए-नासेह

तर्ज़-ए-निगह-ए-चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ तो देखो

अरबाब-ए-हवस हार के भी जान पे खेले

कम-तालई-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ तो देखो

मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो

बदनामी-ए-उश्शाक़ का एज़ाज़ तो देखो

महफ़िल में तुम अग़्यार को दुज़-दीदा नज़र से

मंज़ूर है पिन्हाँ न रहे राज़ तो देखो

उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक

शो'ला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो

दें पाकी-ए-दामन की गवाही मिरे आँसू

उस यूसुफ़-ए-बेदर्द का ए'जाज़ तो देखो

जन्नत में भी 'मोमिन' न मिला हाए बुतों से

जौर-ए-अजल-ए-तफ़रक़ा-पर्दाज़ तो देखो

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