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शाख़ तिनके को लिखा शोले को झोंका लिख दिया - मुईन नजमी कविता - Darsaal

शाख़ तिनके को लिखा शोले को झोंका लिख दिया

शाख़ तिनके को लिखा शोले को झोंका लिख दिया

मैं ग़ज़ल कहने लगा लेकिन क़सीदा लिख दिया

पढ़ती रहती हैं ख़लाओं को मिरी बीनाइयाँ

तू ने इन औराक़ पर मेरे ख़ुदा क्या लिख दिया

किस की साँसें मेरे हाथों की लकीरें बन गईं

किस ने मेरे आइने में अपना चेहरा लिख दिया

किस की ख़ुशबू से महक उट्ठीं मिरी तन्हाइयाँ

किस ने वीराने में क़िस्मत का तमाशा लिख दिया

मैं जहाँ डूबा वहाँ बुनियाद-ए-साहिल पड़ गई

आख़िरी साँसों ने पानी पर जज़ीरा लिख दिया

ज़िंदगी को उड़ते लम्हों के कफ़न में ढाँप कर

संग-ए-मुस्तक़बिल पे मैं ने अपना कतबा लिख दिया

यूँ मुकम्मल की है 'नजमी' मैं ने अपनी दास्ताँ

जिस जगह भी रब्त टूटा नाम उस का लिख दिया

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