सवाल उस से हमारा कहाँ निबाह का है
सवाल उस से हमारा कहाँ निबाह का है
मुतालिबा है मगर सिर्फ़ इक निगाह का है
हमेश्गी के मरासिम तो दिल को रास नहीं
इलाज इस का वही रब्त गाह गाह का है
मैं दीन-ए-इश्क़ में तौहीद का जो क़ाइल हूँ
तो मोजज़ा ये तिरे हुस्न-ए-बे-पनाह का है
विसाल-ओ-हिज्र से मैं किस का इंतिख़ाब करूँ
यहाँ पे ख़ुद से मुझे ख़ौफ़ इश्तिबाह का है
ख़बर नहीं है अभी उस की कम-निगाही को
कि एक मरहला ख़ुद ये भी रस्म-ओ-राह का है
मोअर्रिख़ों को किसी और पर न शक गुज़रे
कि मुझ को मारने वाला मिरी सिपाह का है
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