यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
यही ज़िंदगी हक़ीक़त यही ज़िंदगी फ़साना
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मौत
आज़ार
दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
या अश्कों का रोना था मुझे या अक्सर रोता रहता हूँ
ऐश से क्यूँ ख़ुश हुए क्यूँ ग़म से घबराया किए
कितनी बुलंदियों पे सर-ए-दार आए हैं
न आए मौत ख़ुदाया तबाह-हाली में
वही कसीफ़ घटाएँ वही भयानक रात
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ ओ गुल-ए-तर नहीं तो कुछ भी नहीं
मेरी ही नज़र की मस्ती से सब शीशा-ओ-साग़र रक़्साँ थे