जब मोहब्बत का नाम सुनता हूँ
हाए कितना मलाल होता है
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कितनी बुलंदियों पे सर-ए-दार आए हैं
उस ने इस तरह मोहब्बत की निगाहें डालीं
ऐ ग़ैरत-ए-ग़म आँख मिरी नम तो नहीं है
चमन में थे जो चमन ही की दास्तान सुनते
चश्म-ए-सवाल!
आह भी इक कोशिश-ए-नाकाम है मेरे लिए
गुल
तिरी रुस्वाई का है डर वर्ना
न आए मौत ख़ुदाया तबाह-हाली में
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
जब तुझ को तमन्ना मेरी थी तब मुझ को तमन्ना तेरी थी