जब कभी किसी गुल पर इक ज़रा निखार आया
कम-निगाह ये समझे मौसम-ए-बहार आया
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उस ने इस तरह मोहब्बत की निगाहें डालीं
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
मुस्कुरा कर डाल दी रुख़ पर नक़ाब
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मुदावा
मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे
दाना-ए-ग़म न महरम-ए-राज़-ए-हयात हम
फ़ुज़ूल राज़ मोहब्बत का सब छुपाते हैं
मुतरबा
फिर इशरत-ए-साहिल याद आई फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ भूल गए
बीते हुए दिनों की हलावत कहाँ से लाएँ
सर्व-ओ-समन भी मौज-ए-नसीम-ए-सहर भी है