दिल-ए-नाकाम थक के बैठ गया
जब नज़र आई मंज़िल-ए-मक़्सूद
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दिल में कुछ सोज़-ए-तमन्ना के निशाँ मिलते हैं
तवाइफ़
ग़म की तस्वीर बन गया हूँ मैं
शरीक-ए-महफ़िल-ए-दार-ओ-रसन कुछ और भी हैं
उदासियों के सिवा दिल की ज़िंदगी क्या है
मेरी शायरी और नक़्क़ाद
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
तुझ से नज़र मिला कर दीवाना हो गया मैं
ऐ ग़ैरत-ए-ग़म आँख मिरी नम तो नहीं है
शिकवा ज़बान से न कभी आश्ना हुआ
अल्लाह-रे बे-ख़ुदी कि चला जा रहा हूँ मैं
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना