मुतरबा
नग़्मा-ए-पुर-कैफ़ लब पर दस्त-ए-नाज़ुक साज़ पर
मुतरिबा क़ुर्बान हो जाऊँ मैं इस अंदाज़ पर
गाते गाते इक अदा के साथ रुक जाना तिरा
फिर उसी लय मैं उसी अंदाज़ से गाना तिरा
रूठ कर मन कर लजा कर मुस्कुरा कर नाज़ से
खींच दी तस्वीर हर जज़्बे की सौ अंदाज़ से
चितवनों से गाह बरसा दीं बला की शोख़ियाँ
गाह भर लीं मस्त आँखों में हया की बिजलियाँ
गाह अबरू ख़ंजर-ए-सफ़्फ़ाक हो कर रह गए
गाह आरिज़ अश्क से नमनाक हो कर रह गए
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