मेरे सिवा
तू ही बतला कि भला मेरे सिवा दुनिया में
कौन समझेगा इन आँखों के तबस्सुम का गुदाज़
इन शरर-बार निगाहों में मगर मेरे सिवा
देख पाएगा भला कौन करम के अंदाज़
जिन फ़ज़ाओं में भटकते हैं ख़यालात तिरे
है वहाँ कौन ब-जुज़ मेरे तिरा हम-परवाज़
कौन पढ़ पाएगा तहरीर-ए-जबीन-ए-शफ़्फ़ाफ़
कस को मल सकता है बे-वज्ह तग़ाफ़ुल का जवाज़
कौन समझेगा ब-जुज़ मेरे तिरा हुज़्न-ओ-अलम
जब तिरे दोश पे बिखरी भी न वो ज़ुल्फ़-ए-दराज़
तो ही बतला कि भला कौन समझ पाएगा
तेरे होंटों से बहुत दूर तिरी आह का राज़
जज़्ब हो कर शब-ए-तारीक के सन्नाटे में
कौन इस तरह सुनेगा तिरे दिल की आवाज़
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