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मेरे सिवा - मुईन अहसन जज़्बी कविता - Darsaal

मेरे सिवा

तू ही बतला कि भला मेरे सिवा दुनिया में

कौन समझेगा इन आँखों के तबस्सुम का गुदाज़

इन शरर-बार निगाहों में मगर मेरे सिवा

देख पाएगा भला कौन करम के अंदाज़

जिन फ़ज़ाओं में भटकते हैं ख़यालात तिरे

है वहाँ कौन ब-जुज़ मेरे तिरा हम-परवाज़

कौन पढ़ पाएगा तहरीर-ए-जबीन-ए-शफ़्फ़ाफ़

कस को मल सकता है बे-वज्ह तग़ाफ़ुल का जवाज़

कौन समझेगा ब-जुज़ मेरे तिरा हुज़्न-ओ-अलम

जब तिरे दोश पे बिखरी भी न वो ज़ुल्फ़-ए-दराज़

तो ही बतला कि भला कौन समझ पाएगा

तेरे होंटों से बहुत दूर तिरी आह का राज़

जज़्ब हो कर शब-ए-तारीक के सन्नाटे में

कौन इस तरह सुनेगा तिरे दिल की आवाज़

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