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तुझ से नज़र मिला कर दीवाना हो गया मैं - मुईन अहसन जज़्बी कविता - Darsaal

तुझ से नज़र मिला कर दीवाना हो गया मैं

तुझ से नज़र मिला कर दीवाना हो गया मैं

कुछ राज़ बन गया कुछ अफ़्साना हो गया मैं

अपने लिए बहाया ख़ून-ए-जिगर तो क्या ग़म

तेरे लिए तो रंगीं अफ़्साना हो गया मैं

हाँ अब उठा रहे हो दीवाना-वार नज़रें

जब तुम से तंग आ कर दीवाना हो गया मैं

ये सोच कर कि शायद परवाना-वार आओ

अफ़्सुर्दा सा चराग़-ए-ग़म-ख़ाना हो गया मैं

हट कर ग़मों से अक्सर ठुकरा दिया ग़मों को

अक्सर ग़मों से घुट कर दीवाना हो गया मैं

तेरी नज़र में रह कर इक राज़ बन गया था

गिर कर तिरी नज़र से अफ़्साना हो गया मैं

इक बार और देखा हसरत से उन की जानिब

फिर रफ़्ता रफ़्ता उन से बेगाना हो गया मैं

अब तो मिरी ख़मोशी सब कह चुकी है तुम से

अब तो सुना-सुनाया अफ़्साना हो गया मैं

है काल आँसुओं का क्यूँ चश्म-ए-ग़म में 'जज़्बी'

किस रिंद-ए-तिश्ना-लब का पैमाना हो गया मैं

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