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तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें - मुईन अहसन जज़्बी कविता - Darsaal

तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें

तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें

जुनून-ए-शौक़ में जो चाहें हम ऐ आसमाँ कर लें

जो आए दिल में सब जज़्ब-ए-निगाह-ए-ना-तवाँ कर लें

हम अर्ज़-ए-शौक़ से पहले न उन को राज़-दाँ कर लें

शिकस्ता साज़ छेड़ें अपनी आँखें गुल-फ़िशाँ कर लें

वो आएँ या न आएँ हम तो बज़्म-आराईयाँ कर लें

मिरी नज़रों में ख़ाक-ए-आशियाँ भी आशियाँ होगी

जिन्हें है बिजलियों का ख़ौफ़ फ़िक्र-ए-आशियाँ कर लें

तलाफ़ी कुछ न कुछ हो जाए तकलीफ़-ए-तबस्सुम की

ज़रा ठहरो हम अपने दामनों की धज्जियाँ कर लें

हवा-ए-गर्म कुछ मोहलत दे इन मासूम ग़ुंचों को

कि थोड़ी देर तो नज़्ज़ारा-ए-रंग-ए-जहाँ कर लें

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