सर्व-ओ-समन भी मौज-ए-नसीम-ए-सहर भी है
सर्व-ओ-समन भी मौज-ए-नसीम-ए-सहर भी है
ऐ गुल तिरे चमन में कोई चश्म-ए-तर भी है
साया है ज़िंदगी पे वो यास-ओ-उमीद का
हर शब शब-ए-दराज़ भी है मुख़्तसर भी है
कुछ देर पी लें काकुल-ओ-आरिज़ की छाँव में
जादू-ए-शाम भी है फ़ुसून-ए-सहर भी है
दुनिया सुने तो क़िस्सा-ए-ग़म है बहुत तवील
हाँ तुम सुनो तो क़िस्सा-ए-ग़म मुख़्तसर भी है
(896) Peoples Rate This