ग़म की तस्वीर बन गया हूँ मैं
ख़ातिर-ए-दर्द-आश्ना हूँ मैं
हुस्न हूँ मैं कि इश्क़ की तस्वीर
बे-ख़ुदी तुझ से पूछता हूँ मैं
आह फिर दिल की याद आई है
ज़र्रे ज़र्रे को देखता हूँ मैं
ज़ब्त-ए-ग़म बे-सबब नहीं 'जज़्बी'
ख़लिश-ए-दिल बढ़ा रहा हूँ मैं
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इंतिहा-ए-ग़म में मुझ को मुस्कुराना आ गया
फ़ितरत एक मुफ़लिस की नज़र में
दाग़-ए-ग़म दिल से किसी तरह मिटाया न गया
बड़े नाज़ से आज उभरा है सूरज
तुझी से दाद-ए-वहशत लें तुझी को मेहरबाँ कर लें
यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
न कोई आह न कोई ख़लिश न दर्द न ग़म
फिर इशरत-ए-साहिल याद आई फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ भूल गए
मेरी शायरी और नक़्क़ाद
क्या मातम उन उम्मीदों का जो आते ही दिल में ख़ाक हुईं
न आए मौत ख़ुदाया तबाह-हाली में