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फ़ज़ा-ए-शब में सितारे हज़ार गुज़रे हैं - मुईन अहसन जज़्बी कविता - Darsaal

फ़ज़ा-ए-शब में सितारे हज़ार गुज़रे हैं

फ़ज़ा-ए-शब में सितारे हज़ार गुज़रे हैं

ये आसमाँ से दिलों के ग़ुबार गुज़रे हैं

महक उठे हैं दर-ओ-बाम ओ कूचा ओ बाज़ार

जहाँ जहाँ से तिरे बादा-ख़्वार गुज़रे हैं

मिज़ाज पूछते फिरते हैं ज़र्रे ज़र्रे का

दिलों की राह से कुछ ख़ाकसार गुज़रे हैं

कली ने बढ़ के पुकारा गुलों ने प्यार किया

कभी चमन से जो सीना-फ़िगार गुज़रे हैं

मुझे दिखाओ न ख़ून-ए-जमाल-ए-लाला-ओ-गुल

मिरी नज़र से ये नक़्श ओ निगार गुज़रे हैं

बहा सका न उन्हें वक़्त का भी सैल-ए-रवाँ

वो चंद लम्हे जो इस दिल पे बार गुज़रे हैं

हमारी राह में 'जज़्बी' पहाड़ आए पे हम

मिसाल-ए-अब्र सैर-ए-कोहसार गुज़रे हैं

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