ऐ अक़्ल नहीं आएँगे बातों में तिरी हम
नादान थे नादान हैं नादान रहेंगे
Ahmad Faraz
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(848) Peoples Rate This
ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ में बैठ गई
सुलगती धूप में जल कर फ़क़ीर-ए-शब तिरी ख़ाक
लगता है तबाही मिरी क़िस्मत से लगी है
ख़्वाब में तोड़ता रहता हूँ अना की ज़ंजीर
वो चाहते हैं कि हर बात मान ली जाए
आसार-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ नहीं होते
वो जब भी पुकारेगा यहाँ आन रहेंगे
एक हंगामा शब-ओ-रोज़ बपा रहता है
उस बार उजालों ने मुझे घेर लिया था
आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा