लगता है तबाही मिरी क़िस्मत से लगी है
लगता है तबाही मिरी क़िस्मत से लगी है
ये कौन सी आँधी मिरे अंदर से उठी है
उस बार उजालों ने मुझे घेर लिया था
इस बार मिरी रात मिरे साथ चली है
कैसे कोई बस्ती मिरे अंदर उतर आए
इस बार तो तन्हाई मिरी जाग रही है
कैसे कोई दरिया मिरे सीने से गुज़र जाए
रस्ते में अना की मिरी दीवार खड़ी है
वीरान हवेली की तरह अब मिरे अंदर
भटकी हुई रूहों की सदा गूँज रही है
इस बार अंधेरा मिरे नस नस में भरा है
इस बार चराग़ों से शिकायत भी बड़ी है
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