दरून-ए-ज़ात हुजूम-ए-अज़ाब ठहरा है

दरून-ए-ज़ात हुजूम-ए-अज़ाब ठहरा है

कहाँ ये सिलसिला-ए-इज़्तिराब ठहरा है

यहीं उफ़ुक़ से ज़मीनें सवाल करती हैं

कहाँ ख़लाओं में छुप कर जवाब ठहरा है

बदन-ज़मीन में आँखें उगाई हैं हम ने

बदन-फ़लक पे कोई माहताब ठहरा है

इसी जवाब के रस्ते सवाल आते हैं

इसी सवाल में सारा जवाब ठहरा है

सियह लिबास में हम शब के मातमी ठहरे

सियाह शब की नहूसत में ख़्वाब ठहरा है

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