आसार-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ नहीं होते
आसार-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ नहीं होते
हम शहर-ए-तहय्युर में परेशाँ नहीं होते
रस्ते में तिलिस्मात बिछी जाती हैं हर दम
हम ख़ू-ए-सफ़र सूरत-ए-हैराँ नहीं होते
माज़ी की तनाबों से लगे दर्द के ख़ेमे
क्या जानिए क्यूँ दीदा-ए-इम्काँ नहीं होते
ख़्वाबों की हवेली से रवाँ शोर-ए-मुसलसल
आवाज़-ए-जरस के लिए ज़िंदाँ नहीं होते
हम ज़ब्त की तारीख़ के हैं बाब 'रशीदी'
हम ज़ब्त की तारीख़ में पिन्हाँ नहीं होते
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