आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा
आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा
मैं ख़ुद को देखता रहा मैं ख़ुद को सोचता रहा
ख़ुद को पुकारता रहा, कोई ख़बर नहीं मिली
किस की ख़बर नहीं मिली, किस को पुकारता रहा
उस की तलाश ही न थी, अपनी तलाश भी न थी
खोने का ख़ौफ़ कुछ न था, फिर कैसा फ़ासला रहा
कुछ मसअले तो घर गए, कुछ मसअले बिखर गए
सब मसअले गुज़र गए और एक मसअला रहा
वो भी बिखर बिखर गया मैं भी इधर उधर गया
वो भी धुआँ धुआँ सा कुछ मैं भी ग़ुबार सा रहा
लफ़्ज़ों की शाख़ें फैल कर मेरे लहू से आ मिलीं
कुछ क़हक़हे उछल गए और कोई चीख़ता रहा
(593) Peoples Rate This