कोई अकेला तो मैं सादगी-पसंद न था
पसंद उस ने भी रंगों में रंग सादा किया
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1212) Peoples Rate This
हम ने भी देखी है दुनिया 'मोहसिन'
इक आस तो है कोई सहारा नहीं तो क्या
रस्ते में कोई आ के इनाँ-गीर हो न जाए
जितना तहज़ीब-ए-बदन से मैं सँवरता जाऊँ
बिछड़ने वालों में हम जिस से आश्ना कम थे
मंज़िल-ओ-सम्त-ए-सफ़र से बे-ख़बर ना-आश्ना
सुनते हैं कि आबाद यहाँ था कोई कुम्बा
ये जौर अहल-ए-अज़ा पर मज़ीद करते रहे
ज़माने भर की ज़िल्लत सामने थी
कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है
जाना है उसी सम्त कि चारा नहीं कोई