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नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था - मोहसिन ज़ैदी कविता - Darsaal

नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था

नक़्श पानी पे बनाया क्यूँ था

जब बनाया तो मिटाया क्यूँ था

गए वक़्तों का है अब रोना क्यूँ

आए वक़्तों को गँवाया क्यूँ था

बैठ जाना था अगर मिस्ल-ए-ग़ुबार

सर पे तूफ़ान उठाया क्यूँ था

मेरी मंज़िल न कहीं थी तो मुझे

दश्त-दर-दश्त फिराया क्यूँ था

वो न हमदम था न दम-साज़ कोई

हाल-ए-दिल उस को सुनाया क्यूँ था

दूर रहना था जब उस को 'मोहसिन'

मेरे नज़दीक वो आया क्यूँ था

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