जो दे सका न पहाड़ों को बर्फ़ की चादर
वो मेरी बाँझ ज़मीं को कपास क्या देगा
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आप की आँख से गहरा है मिरी रूह का ज़ख़्म
तुम्हें किस ने कहा था
एक पल में ज़िंदगी भर की उदासी दे गया
मिरा होना न होना
तुम्हें जब रू-ब-रू देखा करेंगे
कठिन तन्हाइयाँ से कौन खेला मैं अकेला
मैं सोचता हूँ
वो अक्सर दिन में बच्चों को सुला देती है इस डर से
वो लम्हा भर की कहानी कि उम्र भर में कही
फ़ज़ा का हब्स शगूफ़ों को बास क्या देगा
कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ को
ये किस ने हम से लहू का ख़िराज फिर माँगा