Ghazals of Mohsin Naqvi
नाम | मोहसिन नक़वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mohsin Naqvi |
जन्म की तारीख | 1947 |
मौत की तिथि | 1996 |
जन्म स्थान | Pakistan |
ज़िक्र-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत उसे भी थी
ज़ख़्म के फूल से तस्कीन तलब करती है
ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ
ये कह गए हैं मुसाफ़िर लुटे घरों वाले
ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी
वो दिलावर जो सियह शब के शिकारी निकले
उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर
उजड़ उजड़ के सँवरती है तेरे हिज्र की शाम
तिरे बदन से जो छू कर इधर भी आता है
सारे लहजे तिरे बे-ज़माँ एक मैं
साँसों के इस हुनर को न आसाँ ख़याल कर
क़त्ल छुपते थे कभी संग की दीवार के बीच
फिर वही मैं हूँ वही शहर-बदर सन्नाटा
नया है शहर नए आसरे तलाश करूँ
मा'रका अब के हुआ भी तो फिर ऐसा होगा
मैं कल तन्हा था ख़िल्क़त सो रही थी
मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा
मैं चुप रहा कि ज़हर यही मुझ को रास था
लबों पे हर्फ़-ए-रजज़ है ज़िरह उतार के भी
किस ने संग-ए-ख़ामुशी फेंका भरे-बाज़ार पर
ख़ुमार-ए-मौसम-ए-ख़ुश्बू हद-ए-चमन में खुला
ख़ुद अपने दिल में ख़राशें उतारना होंगी
कठिन तन्हाइयों से कौन खेला मैं अकेला
कठिन तन्हाइयाँ से कौन खेला मैं अकेला
जुगनू गुहर चराग़ उजाले तो दे गया
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
जब हिज्र के शहर में धूप उतरी मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
हम जो पहुँचे सर-ए-मक़्तल तो ये मंज़र देखा
हवा-ए-हिज्र में जो कुछ था अब के ख़ाक हुआ