तमाम मरहला-ए-फ़र्द-ओ-ज़ात होना है
तमाम मरहला-ए-फ़र्द-ओ-ज़ात होना है
सलीब चढ़ने से पहले सलीब ढोना है
हज़ार बार यज़ीदों से सामना होगा
हज़ार बार मुझे यूँ ही क़त्ल होना है
अभी वो दाग़-ए-गरेबाँ पे तब्सिरा न करे
अभी तो ख़ुद उसे साबुन से हाथ धोना है
सुलगती आग के जंगल का इक शजर हूँ मैं
मिरा वजूद यक़ीनन सराब होना है
हमारे लोग असीरान-ए-शो'बदा-बाज़ी
हमारे शहर में दानिश-वरी का रोना है
ये जिंस-ए-जाँ कि अभी राएगाँ नहीं 'मोहसिन'
कुरेद पाओ तो मिट्टी तमाम सोना है
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