बिसात-ए-ज़ात पथराई तो जाना
बिसात-ए-ज़ात पथराई तो जाना
ख़बर अख़बार में आई तो जाना
सफ़र आसाँ नहीं है पानियों का
जो तलवे आ गई काई तो जाना
लहू क्या चीज़ है इज़हार क्या है
ग़ज़ल कुछ और बल खाई तो जाना
तो वो भी झूट-चेहरा जी रहा था
जो उस की आँख भर आई तो जाना
विरासत सारी अपने नाम कर ली
मगर उस ने मुझे भाई तो जाना
घरौंदे में भी इक आतिश-कदा था
हमारी जाँ पे बन आई तो जाना
थी 'मोहसिन' ये भी जिंस-ए-ना-मुबारक
हुई शोहरत की रुस्वाई तो जाना
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