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तमाशा इस बरस ऐसा हुआ है - मोहसिन एहसान कविता - Darsaal

तमाशा इस बरस ऐसा हुआ है

तमाशा इस बरस ऐसा हुआ है

समुंदर सूख कर सहरा हुआ है

हमें भेजा तो है दुनिया में लेकिन

हमारे साथ कुछ धोका हुआ है

मुझे लगता है जादूगर ने मुझ को

किसी ज़ंजीर से बाँधा हुआ है

जहाँ पर शादयाने बज रहे हैं

मिरा लश्कर वहीं पसपा हुआ है

जो मेरे और उस के दरमियाँ थी

उसी दीवार पर झगड़ा हुआ है

असीरान-ए-क़फ़स ये पूछते हैं

मुक़ीमान-ए-चमन को क्या हुआ है

कई दिन से बस इक हर्फ़-ए-मोहब्बत

सर-ए-नोक-ए-ज़बाँ अटका हुआ है

गुज़रगाहों में सन्नाटा है 'मोहसिन'

ग़ुबार-ए-हमरहाँ बैठा हुआ है

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