सहर से एक किरन की फ़क़त तलब थी मुझे

सहर से एक किरन की फ़क़त तलब थी मुझे

तमाम रात मगर बेकली ग़ज़ब थी मुझे

कनार-ए-शाम पे सुर्ख़ी शफ़क़ की दौड़ गई

लहू उगलने की यूँ आरज़ू भी कब थी मुझे

पते की इक न कही सुब्ह के उजालों में

ये और बात कि अज़बर हदीस-ए-शब थी मुझे

मैं तेरी रूह की पहनाई में उतर न सका

कि तुझ से सिर्फ़ तमन्ना-ए-लब-ब-लब थी मुझे

मैं ख़ुद ही बज़्म भी और ख़ुद ही बज़्म-आरा भी

कि नागवार हर इक महफ़िल-ए-तरब थी मुझे

मैं अपने वक़्त का सुक़रात तो नहीं लेकिन

जहाँ पे बात छिड़ी फिर वहीं पे शब थी मुझे

मैं अपनी ज़ात के अंदर कभी न झाँक सका

ये और बात कि ये आरज़ू भी कब थी मुझे

फ़सील-ए-शब से कोई अब पुकारता है तो क्या

मिला न एक भी उस दिन तलाश जब थी मुझे

शिकायत-ए-शब-ए-हिज्राँ कभी न की 'मोहसिन'

हिकायत-ए-ग़म-ए-दिल वर्ना याद सब थी मुझे

(655) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sahar Se Ek Kiran Ki Faqat Talab Thi Mujhe In Hindi By Famous Poet Mohsin Ehsan. Sahar Se Ek Kiran Ki Faqat Talab Thi Mujhe is written by Mohsin Ehsan. Complete Poem Sahar Se Ek Kiran Ki Faqat Talab Thi Mujhe in Hindi by Mohsin Ehsan. Download free Sahar Se Ek Kiran Ki Faqat Talab Thi Mujhe Poem for Youth in PDF. Sahar Se Ek Kiran Ki Faqat Talab Thi Mujhe is a Poem on Inspiration for young students. Share Sahar Se Ek Kiran Ki Faqat Talab Thi Mujhe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.