मिला भी क्या उसे तौहीन-ए-रंग-ओ-बू कर के
मिला भी क्या उसे तौहीन-ए-रंग-ओ-बू कर के
गया चमन से चमन को जो बे-नुमू कर के
थे ख़ुश-गुमाँ कि किसी ख़ुश-सुख़न से वास्ता है
बहुत मलाल हुआ उस से गुफ़्तुगू कर के
थी सारे शहर को बीमारी-ए-गिराँ-गोशी
सो चुप वतीरा किया हम ने हाव-हू कर के
हमारी सुब्हों के बै-नामे लिखने वालों ने
हमें सियाह किया ख़ुद को सुर्ख़-रू कर के
सगान-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से रहो हुशियार
रिहाई देते हैं 'मोहसिन' लहू लहू कर के
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