Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_ce8ef1c2940736e55abac7f2de3dc38c, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
किस ए'तिमाद से इल्ज़ाम धर गए अपने - मोहसिन एहसान कविता - Darsaal

किस ए'तिमाद से इल्ज़ाम धर गए अपने

किस ए'तिमाद से इल्ज़ाम धर गए अपने

हमारे नाम को बदनाम कर गए अपने

अब उन के नक़्श-ए-क़दम रास्तों में क्या ढूँडें

पराई मंज़िलों को हम-सफ़र गए अपने

बहार ने किया मंसूबा-ए-हिना-बंदी

मनाओ जश्न कि सब ज़ख़्म भर गए अपने

फिर उस के बा'द फ़क़त मैं था मेरा साया था

जो दश्त दश्त थे हम-राह घर गए अपने

जब एक मीर भी हम-साए में मिरे रोया

तो ये गुमाँ हुआ दीवार-ओ-दर गए अपने

हमें अदू से हो 'मोहसिन' गिला तो क्यूँकर हो

हमारे शहर को वीरान कर गए अपने

(640) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kis Etimad Se Ilzam Dhar Gae Apne In Hindi By Famous Poet Mohsin Ehsan. Kis Etimad Se Ilzam Dhar Gae Apne is written by Mohsin Ehsan. Complete Poem Kis Etimad Se Ilzam Dhar Gae Apne in Hindi by Mohsin Ehsan. Download free Kis Etimad Se Ilzam Dhar Gae Apne Poem for Youth in PDF. Kis Etimad Se Ilzam Dhar Gae Apne is a Poem on Inspiration for young students. Share Kis Etimad Se Ilzam Dhar Gae Apne with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.