कैसे कहें दर-ब-दर नहीं हम
कैसे कहें दर-ब-दर नहीं हम
घर में भी हैं और घर नहीं हम
जो राह में साथ छोड़ जाएँ
ऐसों के तो हम-सफ़र नहीं हम
अपनों की कोई ख़बर न रक्खें
इतने भी तो बे-ख़बर नहीं हम
उठ जाए कब अपना आब-ओ-दाना
इंसाँ हैं कोई ख़िज़र नहीं हम
देखें न उठा के आँख उस को
ऐसे भी तो कम-नज़र नहीं हम
सच है कि ख़ुदा के रू-ब-रू भी
शर्मिंदा ख़ताओं पर नहीं हम
हर अन-कही बात सुन रहे हैं
दीवार हैं कोई दर नहीं हम
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