हौसला तू ने दिया दुख की पज़ीराई का
हौसला तू ने दिया दुख की पज़ीराई का
मुझ को अंदाज़ा न था ज़ख़्म की गहराई का
ख़ुशबुएँ फूल से अब इज़्न सफ़र माँगती हैं
इस क़दर क़हत पड़ा शहर में गोयाई का
अब निगाहों में न मंज़र है न पस-मंज़र है
एक इल्ज़ाम इन आँखों पे है बीनाई का
सर-ए-दहलीज़ परेशान-ओ-सरासीमा हूँ
दर मुक़फ़्फ़ल हुआ मुझ पर मिरी तन्हाई का
सिलसिले टूट चुके सारे मोहब्बत के मगर
सुर से इक रब्त है क़ाएम अभी शहनाई का
इस क़दर झूट रचा है रग-ओ-पै में 'मोहसिन'
चेहरा अब मस्ख़ नज़र आता है सच्चाई का
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