दुरुश्त क्यूँ था वो इतना कलाम से पहले
दुरुश्त क्यूँ था वो इतना कलाम से पहले
कि मेरा नाम न था उस के नाम से पहले
वो सब चराग़ कि थी जिन में रौशनी की रमक़
बुझा दिए गए बस्ती में शाम से पहले
वो मेहरबाँ भी हुए दुश्मनी पे आमादा
हम आश्ना भी न थे जिन के नाम से पहले
ख़ुद-ए'तिमाद कभी थे पर अब ये आलम है
हज़ार वसवसे दिल में हैं काम से पहले
हमारे दर्स-ए-मोहब्बत का पूछते क्या हो
किताबी चेहरा पढ़ा है कलाम से पहले
सुबुक-रवान-ए-रह-ए-ग़म ने ज़िंदगी 'मोहसिन'
मुसाफ़िराना गुज़ारी क़याम से पहले
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