चार जानिब से सदा आई मिरी
चार जानिब से सदा आई मिरी
शो'बदा बन गई तन्हाई मिरी
मौत को जब से मुक़ाबिल देखा
ज़िंदगी हो गई शैदाई मिरी
अब भी यारान-ए-गिरफ़्ता-दिल को
याद है अंजुमन-आराई मिरी
लब-कुशाई से मिली रिफ़अत-ए-दार
किस बुलंदी पे है गोयाई मिरी
रात फैली तो सर-ए-ख़ल्वत-ए-ग़म
बे-कराँ बन गई तन्हाई मिरी
सुब्ह चमकी तो ग़ुबार-ए-शब से
बे-मुहाबाना सदा आई मिरी
उम्र भर मेरा मुख़ातिब वो था
बात जिस को न समझ आई मिरी
दिल-ए-नादाँ ने डुबोया 'मोहसिन'
काम कुछ आई न दानाई मिरी
(549) Peoples Rate This