बुझा के रख दे ये कोशिश बहुत हवा की थी

बुझा के रख दे ये कोशिश बहुत हवा की थी

मगर चराग़ में कुछ रौशनी अना की थी

मिरी शिकस्त में क्या क्या थे मुज़मरात न पूछ

अदू का हाथ था और चाल आश्ना की थी

फ़क़ीह-ए-शहर ने बे-ज़ार कर दिया वर्ना

दिलों में क़द्र बहुत ख़ाना-ए-ख़ुदा की थी

अभी से तुम ने धुआँ-दार कर दिया माहौल

अभी तो साँस ही लेने की इब्तिदा की थी

शिकस्त वो थी कि जब मेरी सर-बुलंदी की

मिरे अदू ने मिरे वास्ते दुआ की थी

हम अब ग़ुबार-ए-मह-ओ-साल की लपेट में हैं

हमारे चेहरे पे रौनक़ कभी बला की थी

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Bujha Ke Rakh De Ye Koshish Bahut Hawa Ki Thi In Hindi By Famous Poet Mohsin Ehsan. Bujha Ke Rakh De Ye Koshish Bahut Hawa Ki Thi is written by Mohsin Ehsan. Complete Poem Bujha Ke Rakh De Ye Koshish Bahut Hawa Ki Thi in Hindi by Mohsin Ehsan. Download free Bujha Ke Rakh De Ye Koshish Bahut Hawa Ki Thi Poem for Youth in PDF. Bujha Ke Rakh De Ye Koshish Bahut Hawa Ki Thi is a Poem on Inspiration for young students. Share Bujha Ke Rakh De Ye Koshish Bahut Hawa Ki Thi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.