Ghazals of Mohsin Ehsan
नाम | मोहसिन एहसान |
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अंग्रेज़ी नाम | Mohsin Ehsan |
जन्म की तारीख | 1933 |
मौत की तिथि | 2010 |
जन्म स्थान | Karachi |
ज़लज़लों ने किया यूँ शहर को मिस्मार कि बस
तीरगी है सहन में ताबिंदगी दीवार पर
थिरकती लौ की बस इक आख़िरी दुआ सुनता
तमाशा इस बरस ऐसा हुआ है
तअ'ल्लुक़ात का इक ये भी शाख़साना हुआ
सूफ़ी-ए-शहर मिरे हक़ में दुआ क्या करता
शाख़-ए-मिज़्गान-ए-मोहब्बत पे सजा ले मुझ को
शहर का शहर लुटेरा है नज़र में रखिए
सरिश्क-ए-ख़ूँ सर-ए-मिज़्गाँ कभी पिरोए न थे
सर पे तेग़-ए-बे-अमाँ हाथों में प्याला ज़हर का
सैल-ए-बला-ए-ग़म न पूछ कितने घरौंदे ढह गए
सहर से एक किरन की फ़क़त तलब थी मुझे
सफ़र में याद न आए कोई ठिकाना हमें
साए की उम्मीद थी तारीकियाँ फैला गया
सबा में था न दिल-आवेज़ी-ए-बहार में था
रौशनियाँ बदन बदन तेरे मिरे लहू से हैं
राख कुछ दिल में ज़ियादा है शरारा कम है
निगार-ए-फ़न पे हरीफ़ान-ए-शे'र की यलग़ार
मोहब्बतों का ख़रीदार ढूँडने निकला
मिला भी क्या उसे तौहीन-ए-रंग-ओ-बू कर के
मिरी नवा मिरी तदबीर तक नहीं पहुँची
मिरे वजूद के दोज़ख़ को सर्द कर देगा
मौत से यारी न थी हस्ती से बे-ज़ारी न थी
मैं एक उम्र के बा'द आज ख़ुद को समझा हूँ
लिबास तन पे सलामत हैं हाथ ख़ाली हैं
किसी के सामने इज़हार-ए-दर्द-ए-जाँ न करूँ
किस ए'तिमाद से इल्ज़ाम धर गए अपने
ख़ुलूस हो तो दुआ में असर भी आता है
खुली आँखों से सपना देखने में
ख़ुद से ना-ख़ुश ग़ैर से बे-ज़ार होना था हुए