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अगर यही है शायरी तो शायरी हराम है! - मोहसिन भोपाली कविता - Darsaal

अगर यही है शायरी तो शायरी हराम है!

अगर यही है शायरी तो शायरी हराम है!

ख़िरद भी ज़ेर-ए-दाम है जुनूँ भी ज़ेर-ए-दाम है

हवस का नाम इश्क़ है तलब ख़ुदी का नाम है

नज़र उदास दिल मलूल रूह तिश्ना-काम है

मगर लबों पे नग़्मा-ए-हयात शाद-काम है

रहीन-ए-आरिज़-ए-हसीं असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू!

निगाह में लिए हुए घुटी घुटी सी जुस्तुजू

भटक रहे हैं वादी-ए-ख़िज़ाँ में बहर-ए-रंग-ओ-बू

सहर के गीत गा रहे हैं और वक़्त-ए-शाम है

नज़र में माह-ओ-कहकशाँ हैं अज़्मत-ए-बशर नहीं

क़दम बढ़ा रहे हैं और राह मो'तबर नहीं

फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-चमन हैं दाम पर नज़र नहीं

ख़याल-ए-नज़्म-ए-मय-कदा नहीं है फ़िक्र-ए-जाम है

मिला वो इख़्तियार जिस पे बेबसी है ख़ंदा-ज़न

वो रौशनी मिली कि जिस पे तीरगी है ख़ंदा-ज़न

वो ज़िंदगी मिली कि जिस पे मौत भी है ख़ंदा-ज़न

ब-ज़िद हैं फिर भी कज-नज़र हयात शाद-काम है

नुमाइश-ओ-नुमूद-ओ-नंग-ओ-नाम पर निगाह है!

जमाल-ए-यार-ओ-जूएबार-ओ-जाम पर निगाह है

ब-नाम-ए-बंदगी बुतान-ए-बाम पर निगाह है

शबाब-ओ-शेर-ओ-शाहिद-ओ-शराब से ही काम है

अगर यही है शायरी तो शायरी हराम है

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