ज़ाविया कोई मुक़र्रर नहीं होने पाता

ज़ाविया कोई मुक़र्रर नहीं होने पाता

दाइमी एक भी मंज़र नहीं होने पाता

उम्र-ए-मसरूफ़ कोई लम्हा-ए-फ़ुर्सत हो अता

मैं कभी ख़ुद को मयस्सर नहीं होने पाता

आए दिन आतिश ओ आहन से गुज़रता है मगर

दिल वो काफ़िर है कि पत्थर नहीं होने पाता

क्या उसे जब्र-ए-मशीयत की इनायत समझूँ

जो अमल मेरा मुक़द्दर नहीं होने पाता

चश्म-ए-पुर-आब समो लेती है आलाम की गर्द

आइना दिल का मुकद्दर नहीं होने पाता

चादर-ए-इज्ज़ घटा देती है क़ामत मेरा

मैं कभी अपने बराबर नहीं होने पाता

फ़न के कुछ और भी होते हैं तक़ाज़े 'मोहसिन'

हर सुख़न-गो तो सुख़न-वर नहीं होने पाता

(972) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Zawiya Koi Muqarrar Nahin Hone Pata In Hindi By Famous Poet Mohsin Bhopali. Zawiya Koi Muqarrar Nahin Hone Pata is written by Mohsin Bhopali. Complete Poem Zawiya Koi Muqarrar Nahin Hone Pata in Hindi by Mohsin Bhopali. Download free Zawiya Koi Muqarrar Nahin Hone Pata Poem for Youth in PDF. Zawiya Koi Muqarrar Nahin Hone Pata is a Poem on Inspiration for young students. Share Zawiya Koi Muqarrar Nahin Hone Pata with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.