वो बर्ग-ए-ख़ुश्क था और दामन-ए-बहार में था

वो बर्ग-ए-ख़ुश्क था और दामन-ए-बहार में था

नुमूद-ए-नौ की बशारत के इंतिज़ार में था

मिरी रफ़ीक़-ए-सफ़र थीं हसद भरी नज़रें

वो आसमान था और मेरे इख़्तियार में था

बिखर गया है तो अब दिल निगार-ख़ाना है

ग़ज़ब का रंग उस इक नक़्श-ए-ए'तिबार में था

अब आ गया है तो वीरानियों पर तंज़ न कर

तिरा मकाँ इसी उजड़े हुए दयार में था

लिखे थे नाम मिरे क़त्ल करने वालों के

अजीब बात है मैं भी इसी शुमार में था

मुझे था ज़ोम मगर मैं बिखर गया 'मोहसिन'

वो रेज़ा रेज़ा था और अपने इख़्तियार में था

(647) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Wo Barg-e-KHushk Tha Aur Daman-e-bahaar Mein Tha In Hindi By Famous Poet Mohsin Bhopali. Wo Barg-e-KHushk Tha Aur Daman-e-bahaar Mein Tha is written by Mohsin Bhopali. Complete Poem Wo Barg-e-KHushk Tha Aur Daman-e-bahaar Mein Tha in Hindi by Mohsin Bhopali. Download free Wo Barg-e-KHushk Tha Aur Daman-e-bahaar Mein Tha Poem for Youth in PDF. Wo Barg-e-KHushk Tha Aur Daman-e-bahaar Mein Tha is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Barg-e-KHushk Tha Aur Daman-e-bahaar Mein Tha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.