Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_51f12b565f961b05391c4297c09588e2, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सरों की फ़स्ल काटी जा रही है - मोहसिन भोपाली कविता - Darsaal

सरों की फ़स्ल काटी जा रही है

सरों की फ़स्ल काटी जा रही है

वो देखो सुर्ख़ आँधी आ रही है

हटा लो सहन से कच्चे घड़ों को

कहीं मल्हार सोहनी गा रही है

मिरी दस्तार कैसे बच सकेगी

क़सम वो मेरे सर की खा रही है

ये बरसेगी कहीं पर और जा कर

घटा जो मेरे सर पर छा रही है

समझ रक्खा है क्या दीवानगी को

ये दुनिया क्या हमें समझा रही है

तमन्ना जल्द मरने की है हम को

हयात अब तक यूँही बहला रही है

(1310) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Saron Ki Fasl KaTi Ja Rahi Hai In Hindi By Famous Poet Mohsin Bhopali. Saron Ki Fasl KaTi Ja Rahi Hai is written by Mohsin Bhopali. Complete Poem Saron Ki Fasl KaTi Ja Rahi Hai in Hindi by Mohsin Bhopali. Download free Saron Ki Fasl KaTi Ja Rahi Hai Poem for Youth in PDF. Saron Ki Fasl KaTi Ja Rahi Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Saron Ki Fasl KaTi Ja Rahi Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.