जाहिल को अगर जेहल का इनआ'म दिया जाए
जाहिल को अगर जेहल का इनआ'म दिया जाए
इस हादिसा-ए-वक़्त को क्या नाम दिया जाए
मयख़ाने की तौहीन है रिंदों की हतक है
कम-ज़र्फ़ के हाथों में अगर जाम दिया जाए
है ख़ू-ए-अयाज़ी ही सज़ावार-ए-मलामत
महमूद को क्यूँ ता'ना-ए-इकराम दिया जाए
ज़िद है कि उन्हें मान के सरख़ील-ए-बहाराँ
ग़ुंचों की तरफ़ से कोई पैग़ाम दिया जाए
हम मस्लहत-ए-वक़्त के क़ाइल नहीं यारो
इल्ज़ाम जो देना है सर-ए-आम दिया जाए
बेहतर है कि इस बज़्म से उठ आइए 'मोहसिन'
सरक़े को जहाँ रुत्बा-ए-इल्हाम दिया जाए
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