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वक़्त - मोहसिन आफ़ताब केलापुरी कविता - Darsaal

वक़्त

वक़्त बड़ा ज़ालिम है मोहसिन

उम्र को मेरी नोच नोच के खा जाता है

पी जाता है रोज़ तवानाई मेरी

राख मिरे माज़ी की हर दिन

मेरे ही बालों पर लीपता रहता

आँखों में तारीकी झोंकता रहता है

मेरे बदन पे झुर्रियाँ मलता रहता है

साँसों को दाँतों से काटता रहता है

तिल तिल कर के मुझ को मारता रहता है

वक़्त बड़ा चालाक भी है

आता है कब हाथ किसी के

लेकिन मेरे हाथ लगा तो

इस से इक इक ज़ुल्म का बदला ले लूँगा

और ख़ुदा के पास उसे पहुँचा दूँगा

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