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हमारे दिल में यादों को सलीक़े से रखा जाए - मोहसिन आफ़ताब केलापुरी कविता - Darsaal

हमारे दिल में यादों को सलीक़े से रखा जाए

हमारे दिल में यादों को सलीक़े से रखा जाए

कि इस कमरे में फूलों को सलीक़े से रखा जाए

मसीहाई की फिर कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ती

अगर ज़ख़्मों पे अश्कों को सलीक़े से रखा जाए

दिलों की हुक्मरानी का ये इक अच्छा तरीक़ा है

हर इक जुमले में लफ़्ज़ों को सलीक़े से रखा जाए

अदब है दीन-ओ-दुनिया है छुपा है इल्म भी इस में

मिरे बच्चो किताबों को सलीक़े से रखा जाए

तिरा ये घर लगेगा ख़ूबसूरत ऐ मिरे भाई

अगर इन सारे रिश्तों को सलीक़े से रखा जाए

वो जाने वाला जाने कौन से पल लौट कर आए

अभी रस्ते पे आँखों को सलीक़े से रखा जाए

बरसती है ख़ुदा की रहमतें उन की दुआओं से

घरों में सब बुज़ुर्गों को सलीक़े से रखा जाए

ग़रीबी देखती रहती है हसरत से खड़ी हो कर

दुकानों में खिलौनों को सलीक़े से रखा जाए

पड़ोसी का भी हक़ है तुझ पे इतना याद रख 'मोहसिन'

मुंडेरों पर चराग़ों को सलीक़े से रखा जाए

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