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तअ'ल्लुक़ात की दुनिया का हाल क्या कहिए - मोहन सिंह ओबेरॉय दीवाना कविता - Darsaal

तअ'ल्लुक़ात की दुनिया का हाल क्या कहिए

तअ'ल्लुक़ात की दुनिया का हाल क्या कहिए

कि मरना सहल है जीना मुहाल क्या कहिए

उन्हें जो राज़िक़-ए-कुल को भुला के करते हैं

गदागरान-ए-ज़माँ से सवाल क्या कहिए

अदब की महफ़िलों और दीन की मजालिस में

न कैफ़-ए-हाल न लुत्फ़-ए-मक़ाल क्या कहिए

हसीन आज उतर आए हुस्न-बाज़ी पर

ये जोश-ओ-तर्ज़-ए-नुमूद-ए-जमाल क्या कहिए

हराम हो गई अंगूर-ओ-जौ की सादा कशीद

लहू ग़रीब का ठहरा हलाल क्या कहिए

फ़साना-साज़ो हक़-आमोज़-ओ-जाबिर-ओ-रहमान

है पुर-तज़ाद बशर का कमाल क्या कहिए

बस एक नक़्श है चर्बे उसी के उठते हैं

फ़साना-हा-ए-उरूज-ओ-ज़वाल क्या कहिए

तमाम चीज़ें हड़पने के बा'द भी भूकी

सियासत ऐसी है ला'नत-मआल क्या कहिए

मिज़ाज-ए-दहर है गोया मिज़ाज औरत का

अभी है अम्न भी जंग-ओ-जिदाल क्या कहिए

तमाम चीज़ें फ़रावाँ भी हैं गराँ भी हैं

है एक सिद्क़-ओ-सदाक़त का काल क्या कहिए

अदीब-ओ-नाक़िद-ओ-नक़्क़ाश-ओ-अहल-ए-रक़्स-ओ-ग़िना

चलें ख़ुशी से हुकूमत की चाल क्या कहिए

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