था ज़ुलेख़ा को जो जाँ से मह-ए-कनआ'न अज़ीज़
था ज़ुलेख़ा को जो जाँ से मह-ए-कनआ'न अज़ीज़
हम ने भी तुझ से तो बे-मेहर न की जान अज़ीज़
कल मुझे क़त्ल कर उस दुश्मन-ए-दीं काफ़िर ने
बोला लोगों से ये था मर्द-ए-मुसलमान अज़ीज़
क्यूँ न वो मुसहफ़-ए-रू जाँ से मुझे होवे ज़ियाद
किस मुसलमाँ को नहीं दीन और ईमान अज़ीज़
ख़ाकसार अर्श से भी देखा परे तेरा मिज़ाज
आप में आ ज़रा अपने तईं पहचान अज़ीज़
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