मैं ही दीवाना सही लोग तो फ़रज़ाने हैं
मैं ही दीवाना सही लोग तो फ़रज़ाने हैं
क्यूँ हक़ाएक़ में मिला देते ये अफ़्साने हैं
एक लम्हे को निगह और तरफ़ भटकी थी
वर्ना हम सिर्फ़ तिरी दीद के दीवाने हैं
जिस ने देखा न उसे होश रहा तन-मन का
तेरी आँखें हैं कि जादू हैं कि मय-ख़ाने हैं
दिल में वो कुछ है कि लफ़्ज़ों में अदा हो न सके
वो समुंदर तो ये टूटे हुए पैमाने हैं
एक वो लोग कि सहराओं को रौनक़ बख़्शें
एक हम हैं कि भरे शहर भी वीराने हैं
वो भी दिन थे जो किया करता था ख़ुद से बातें
आज 'आसी' के बड़े लोगों से याराने हैं
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