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मैं ही दीवाना सही लोग तो फ़रज़ाने हैं - मोहम्मद याक़ूब आसी कविता - Darsaal

मैं ही दीवाना सही लोग तो फ़रज़ाने हैं

मैं ही दीवाना सही लोग तो फ़रज़ाने हैं

क्यूँ हक़ाएक़ में मिला देते ये अफ़्साने हैं

एक लम्हे को निगह और तरफ़ भटकी थी

वर्ना हम सिर्फ़ तिरी दीद के दीवाने हैं

जिस ने देखा न उसे होश रहा तन-मन का

तेरी आँखें हैं कि जादू हैं कि मय-ख़ाने हैं

दिल में वो कुछ है कि लफ़्ज़ों में अदा हो न सके

वो समुंदर तो ये टूटे हुए पैमाने हैं

एक वो लोग कि सहराओं को रौनक़ बख़्शें

एक हम हैं कि भरे शहर भी वीराने हैं

वो भी दिन थे जो किया करता था ख़ुद से बातें

आज 'आसी' के बड़े लोगों से याराने हैं

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