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आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें - मोहम्मद याक़ूब आसी कविता - Darsaal

आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें

आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें

दौर-ए-हाज़िर के ग़म शुमार करें

और भी बोझ हैं इसी सर पर

आरज़ूएँ कहाँ सवार करें

आप नुक़सान सह न पाएँगे

आप दिल का न कारोबार करें

हम से तो बे-रुख़ी नहीं होती

जो भी चाहें हमारे यार करें

आबला-पा पयाम छोड़ गए

लोग नज़्ज़ारा-ए-बहार करें

है तक़ाज़ा-ए-ग़ैरत-ए-इमरोज़

ज़ोर-ए-बाज़ू पे इंहिसार करें

कुछ तो फ़रमाइए कि 'आसी-जी'

क्या करें किस पे ए'तिबार करें

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